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अध्यात्म

यूँ तो ईश्वर को लेकर मेरी कोई अवधारणा नहीं, पर वो है और मुझसे प्रेम करता है,मेरी हर कारगुज़ारी पर उसकी पैनी नजर रहती है,उसके सीसीटीवी में कैद मेरी हर गतिविधि होती है, यह जानते बूझते भी मैं सतर्क नहीं रहती क्योकि मुझे पता है, मेरा ईश्वर मुझसे प्रेम करता है और यह दावा मैं इसलिये कर सकती हूँ क्योकि मैने उसे पाने के कभी प्रयास ही नहीं किये, लेकिन फिर भी वो हर वक्त मेरे साथ उपस्थित  रहा।           मै नहीं जानती कि मैं आस्तिक हूँ या नास्तिक लेकिन हाँ, मैं आध्यात्मिक हूँ पर आश्चर्य की बात यह है कि मुझे अध्यात्म की गहराईयों का भी न पता.......न मुझे शास्त्रों का ज्ञान ना गूढ़ बातों की जानकारी लेकिन फिर भी मैं ईश्वरीय शक्ति को महसूस करती हूँ, हर पल,और शायद यही अध्यात्म  है और अगर यह अध्यात्म नहीं है तो शायद मै आध्यात्मिक भी नहीं हूँ। बहुत बार उत्सुकता होती है इसे जानने की, समझने की..... पर फिर डर लगता है कि ज्ञान आते ही कही मेरा ईश्वर मुझसे दूर न हो जाये क्योकि जो मुझे सहज उपलब्ध है, उसे और अधिक पाने का प्रयास क्यो ?ज्ञान की अवधारणाओं और तर्क वितर्क से परे मन ईश्वर के ज्यादा नजदीक होता है, नन्