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जनवरी, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
हर रोज की तरह,आज भी माॅरनिंग वाॅक के बाद ,डेली न्यूज़ सुनते हुए अपने काम निपटा रही थी।यह मेरा रोज का नियम है,न्यूज़ बिना मेरी इजाज़त के मेरे कानों में जाती रहती है क्योंकि ड्राॅईंगरूम में टीवी पर सिर्फ न्यूज़ ही चलती है। मैं बिना डिस्टर्ब हुए अपने कामों में व्यस्त रहती हुँ। हाँ,कुछ ताज़ातरीन ख़बरें ज़रूर मेरी जानकारी में इज़ाफ़ा कर देती है। लेकिन...............आज की ख़बर ने मेरा दिल दहला दिया। मैं पूरी तरह से भावशुन्य हो गयी और अभी तक हुँ। एक पाकिस्तानी नागरिक हाथ में एक कटा हुआ िसर लेकर घुम रहा था,न्यूज़ के मुताबिक़ वे जश्न मना रहे थे। संदेह है कि िसर हमारे वीर जवान हेमराज सिंह का हो सकता है,पिछले वर्ष बिना िसर के जिनका अंतिम संस्कार किया गया था। इस ख़ौफ़नाक और निर्मम करतुत को देखकर ना चुप रहते बन पा रहा है और ना ही बोलते। मैं स्तब्ध हुँ और व्यथित भी कि परिवार वालों पर क्या बीत रही होगी........? क्या हैवानियत से उपर का कोई शब्द है इस करतुत को परिभाषित करने के लिये.............?

बेल

क़रीबन हफ़्ताभर पहले रसोईघर की खिड़की में रखे अपने पौधों को पानी देते समय मैंने देखा कि एक नन्हा सा अनजाना बीज गमले के एक कोने से अंकुरित हो रहा है।दुसरे दिन मैंने देखा कि वह बड़ी तेज़ी से बढ़ रहा है,कौतूहलवश मैं रोज पानी देती रही और हफ़्ते भर में एक बल खाती इठलाती बेल मेरी नजरों के सामने थी,जो मेरी रसोईघर की खिड़की से लगकर ऊपर की ओर बढ़े जा रही थी। हांलाकि अभी तक मुझे यह समझ नहीं आया कि यह बेल है किस चीज़ की,फिर भी इसकी बल खाती अदाओं ने मुझे अपनी ओर खींच रखा है। हफ़्ताभर से ना जाने कितने सबक़ यह मुझे सिखा रही है,बस उन्हीं बातों को यहाँ बाँटना चाहती हुँ। सबसे पहले जब यह अंकुरित हुआ था तो मुझे आश्चर्य हुआ कि बिना कोई बीज डाले यह कैसे फुटा,शायद पहले का कोई बीज था जो मिट्टी में गहरा दबा था,लेकिन जैसे ही उसे मिट्टी पानी की नमी मिली वो लहरा उठा।बिल्कुल इसी तरह हम सब के अंदर भी ना जाने कितनी अच्छाइयाँ दबी पड़ी है जो अनुकूल वातावरण मिलते ही निकल आती है।अपने बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने के लिये हमे उन्हें उचित खाद पानी देना चाहिये ताकि उनकी प्रतिभा निखर सके। जिस तेज़ी से यह बेल बढ़ रही थ

नया साल

जीवन का एक और वर्ष ले रहा है विदा अब कहना है निराशा को अलविदा कुछ यादें छलकी सी कुछ यादें धुमिल सी कुछ खुशियों भरी ओस की बुंदों सी कल से बन जायेगी धरोहर बीते हुए साल की नये सपनों के संग शुरुआत होगी नये साल की कल का सुरज मिटा देगा कोहरा आसां हो जायेगी मुश्किल राह की रात गयी सो बात गयी जगी है ललक अब कुछ पाने की हम बढ़े,सब बढ़े और बड़ी हो सोच सबकी ना कुछ तेरा ना मेरा ये जीवन तो है नियामत ख़ुदा की बस.... खुश रहे सब चाह बढ़ जाये जीने की