आज मन उदास है सब कुछ मेरे पास है कोई आरजू ना आस है जाने क्यों फिर भी मन उदास है शायद रूखे मौसम का तकाजा है या फिर बेरुखियों का तमाचा है भागे मन , दौड़े मन बंज़र रेगिस्तान में ये कैसी प्यास है आज मन उदास है खुशियाँ बिखरी आस-पास दुखों से मन मेरा अनजान बाहर है संगीत तो अन्दर निश्वास है जाने क्यों आज मन उदास है रोज सजते सपने जिन आँखों में आज टकटकी लगी वीरानो में अपनों का मेला है सपनो का रेलम-पेला है फिर भी मन मेरा अकेला है क्या ये आने वाले वक़्त की कुछ अनहोनी आहट है या फिर मन नहीं , आज का मौसम ही उदास है
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है